मोहब्बत का जनाजा
मोहब्बत का जनाजा
अपनी मोहब्बत के जनाजे को खुद उठाया है मैंने
सारे रस्मों,रिवाजों के साथ सीने में दफनाया है मैंने।
सुपुर्दे-खाक की है,एहसासों संग तमाम बिखरती यादे तेरी
अधूरे ख्वाबों ने मुश्किलों से थामी है,ये टूटती जिंदगी मेरी।
जिस्म से रूह तक फैली तेरी निशानियों को मिटाया है मैंने
तेरी जाने के आहट से जुड़ी हर दर्द को अपनाया है मैंने।
मिट्टी में मिला कर ये इश्क़,अश्कों से शजर उगाया है मैंने
इसकी हर डाल पर तेरी अधूरी वादों को सजाया है मैंने।
कैसे बताऊं किस तरह खुद को हर वक़्त समझाया है मैंने
इन दरख़्तों से पूछो,किस तरह यूं मौन ये चोट खाया है मैंने।
