विजय और पराजय
विजय और पराजय
विजय की जयघोष हो
या हो पराजय का विलाप
सबकी निज संघर्ष गाथा है
विजय अटल नहीं
पराजय शुन्य नहीं
क्यों हार का हम शोक मनाये ?
फिर एक और ललकार होगी
तब देखना जय हमारी होगी
पराजय में छिपी दुर्बलता को दूर करूँगा
एक बार फिर शून्य से शुरुआत करूँगा।
