आखिरी वार
आखिरी वार
मैं भी भोली, मैं भी प्यारी
क्या चरित्र की एकलौती उत्तराधिकारी ?
मैं भी सुंदर, मैं भी कोमल
क्या सिर्फ प्यास मिटाने की हूँ जल ?
मेरा भी जीवन, मेरे भी कुछ अधिकार
क्यों हर बार देता रूढ़िवादी समाज मुझे दुत्कार ?
क्यों मेरे उड़ानों पर है पहरा ?
मेरा भी ख़्वाब है आसमानों पर ठहरा
कुछ बुलंदिया छूई है मैंने
आसमानों को छूना बाकी है
रोक पाएगा न कोई मेरी उड़ान, स्पष्ट है मेरे विचार
अब मेरे संघर्ष का होगा रुढ़िवादी विचारों पर आखिरी वार।