STORYMIRROR

Aditya Srivastav

Abstract

4  

Aditya Srivastav

Abstract

पापा

पापा

1 min
319

पापा, तेज धूप में

 सिर पर ठंडी छांव के तरह


विपरीत लहरों से लड़ती

निर्भीक निडर नांव के तरह


जिनके ही पद चिन्हों पे

चलते हैं ये पाँव दो सदा,


पापा वो जो बनते मलहम

हमारे हर घाव पे सदा !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract