चाय की एक चुस्की
चाय की एक चुस्की
वो चुस्की थी एक चाय की, और चाय की थी हमें तलब!
न जाने उसको गलती से चाहा कि उसे चाहना ही था गलत!
वो चुस्की थी एक चाय की, और हम चाय के तलबगार थे!
हमने बस उस एक को चाहा उसके चाहने वाले हज़ार थे!!
वो चुस्की थी एक चाय की, वो कड़क भी थी और मीठी भी!
शोला भी थी और शबनम भी, गीली मिट्टी-सी भीनी
भी!!
वो सुबह वाली चाय थी मिल जाये तो सुबह खूबसूरत है बहार है
जो मिले न गर वो गलती से भी, सरदर्द से हालत ख़राब है