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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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भूल से सीख

भूल से सीख

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हर एक भूल एक नया पैग़ाम लाती है

एक निशा ही सवेरा का गीत गाती है

बहुत सी दफ़ा सावन की बारिश से नहीं,

जेठ की दुपहरी से भी खुशियां आती है


भूल से बहुत बार भटकना नहीं होता है

कभी-कभी भूल भी सही राह दिखाती है

हर एक भूल एक नया पैग़ाम लाती है

भूल अक्सर जिंदगी बिगाड़ा नहीं करती है


कभी एक भूल से जिंदगी सँवर जाती है

हर एक भूल रोशनी की ही एक साखी है

जिनकी भूल में रोना नहीं पछतावा है,

उन्हें भूल सफ़लता की सीढ़ी चढ़ाती है


हर एक भूल एक नया पैग़ाम लाती है

हार के साथ ही सदा जीत जुड़ी होती है

हरएक भूल के साथ उम्मीद जुड़ी होती है

हर एक भूल दीपक की ही एक बाती है


क़भी-क़भी जख्मों से ही दवा बन जाती है

बहुत सी बार काजू-बादाम से कुछ नहीं

ठोकर लगने से फ़टाफ़ट अक्ल आती है

ये भूल समझने वाले पर निर्भर करता है


वैसे हर शूल एक फूल की ही बाती है

हर एक भूल एक नया पैग़ाम लाती है।


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