हिन्दी की महिमा
हिन्दी की महिमा
भारत माँ की संतान हैं, हिन्दी ही पहचान है
अपनेपन की भाषा है, आत्मा का ईमान है।
काश्मीर से कन्याकुमारी तक समझी जाती है
हर शहर, हर गाँव में यह भाषा बोली जाती है।
तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, रवि हो या रसखान
कई कथाकारों संग हरदम रही है इसकी शान।
चाहे कितनी सदियाँ बदली, बदले राजघराने ,
हिन्दी का मूल्य कम नहीं, जाने अपने बेगाने।
मीठे इसके सुर और साज़, मीठी मधुर है वाणी
स्नेह रस टपके शब्दों में, जन जन की है प्यारी।
जब भारत गुलाम था, तब भी बोलबाला था
राष्ट् प्रेम की भावना से एक सूत्र में बांधा था।
बड़े गर्व से संविधान में महारानी सा मान मिला
सम्मति से सबके इसे राजभाषा का दर्जा मिला।
विभिन्न प्रदेशों की समस्त भाषाओं का गहना है
बोलियाँ चाहे कितनी, हिन्दी के संग ही रहना है।
हिन्दी हर भारतवासी का राष्ट्रीय मान सम्मान है
इसका ज्ञान बंटता रहे, यह अपना अभिमान है।