STORYMIRROR

Padma Motwani

Abstract

4.5  

Padma Motwani

Abstract

ग्रामीण कन्या

ग्रामीण कन्या

1 min
219


समय बदला, बदले गाँव 

शहर चले गोरी के पाँव। 

रुप पर अपने है इठिलाती

मन ही मन में है मुस्काती।


संस्कारों से सुशोभित रहती

चकाचौंध से बचकर रहती।

संयम नियम से बंधी रहती

चुनर लाज की ओढ़े रखती।


पाज़ेब की छम-छम छनक

गजरे की सौंधी सौंधी महक।

चूड़ियों की मनभावन खनक

उस लड़की के संग है रहती।


कठिन राह आसान बनाती

हर कोने परचम फहराती।

पढ़ लिख कर काबिल बनती

वह देश की पहचान बनती।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract