ग्रामीण कन्या
ग्रामीण कन्या


समय बदला, बदले गाँव
शहर चले गोरी के पाँव।
रुप पर अपने है इठिलाती
मन ही मन में है मुस्काती।
संस्कारों से सुशोभित रहती
चकाचौंध से बचकर रहती।
संयम नियम से बंधी रहती
चुनर लाज की ओढ़े रखती।
पाज़ेब की छम-छम छनक
गजरे की सौंधी सौंधी महक।
चूड़ियों की मनभावन खनक
उस लड़की के संग है रहती।
कठिन राह आसान बनाती
हर कोने परचम फहराती।
पढ़ लिख कर काबिल बनती
वह देश की पहचान बनती।