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Padma Motwani

Classics

4.5  

Padma Motwani

Classics

प्रेम

प्रेम

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सूरज जैसा सत्य है प्रेम, मधुरस का प्याला है

सर्वत्र साम्राज्य है इसका, रंग बड़ा निराला है।


प्रेम प्रकृति के हर कण का सुंदर रुप दिखाता

इतर बन फूल की सुवासित सुगंध फैलाता।


प्रेम खिलते गुलाब सा हर मन में मंडराता है

आजीवन तपस्या से यह निखरता जाता है।


तर्क रहित मन की मासूमियत में प्रेम पलता है

गिले शिकवों से दूर एक कोने में प्रेम पलता है।


प्रेम का कोई कोना मोहताज नहीं इज़िहार का

वह सम्मान करता अपने मन के जज़्बातों का।


अपना सबकुछ न्यौछावर कर कहीं खो जाता

"स्व" को भुला आत्मा से एकाकार हो जाता।


बसंत की, बसंती बहार की प्रतीक्षा नहीं करता

अपने प्रेम से एक दूजे के मन का श्रृंगार करता।


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