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Abhimanyu Lohani

Classics

4  

Abhimanyu Lohani

Classics

माँ आदि है, जन्नत है

माँ आदि है, जन्नत है

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माँ अपने आप में आदि है जन्नत है, पूर्ण है, सम्पूर्ण है,

माँ के बारे लिखना, ब्रम्हांड की व्याख्या होती है।


मेरे लिए तो माँ हर दिन ही तुम्हारा दिन हो जाता है

किस दिन कह दूँ की ये सिर्फ तुम्हारा दिन होता है !


तुम्हे याद करके ही तो माँ मेरा हर एक दिन और शाम होता है,

क्या लिखू तुम्हारे बारे में माँ, तेरे लिए इतने शब्द कहाँ से लाऊंगा !

बस इतना कह सकता हु माँ, कि मेरी शब्द भी तू ही है स्याही भी तू।


है सागर से गहरा प्यारा तेरा, इतने शब्द कहाँ से ला पाउँगा माँ ,

तुझसे ही तो मैं शुरू होता हु, तू ही तो अन्नत है माँ !

जहां भी होता हूँ, खुद में ही तुमको पाता हूँ,

तेरे प्यार के महक से मैं खुद्द भी सुगन्धित हो जाता हूँ।


है न संसार में कोई ऐसा लेखनी की तेरी महिमा लिख पायेगा,

तेरी गाथा तो माँ हर जन्मो में पूजा जायेगा !

तेरी करुणा और दया के वचनों की बात तो तीनो लोकों में होती है,

बस माँ मैं तुमसे ही तो हूँ , तेरी हर साँस में खुद को जीता हूँ।


जब से आँख खुली इस धरती पर, माँ मैंने तेरा ही आँचल पाया है,

माँ तेरी इस ममता की आँचल में खुद को सबसे सुरक्छित पाया है !

माँ तेरे प्यार और समर्पण से खुद को पूर्ण समझता हूँ,

हे माँ हर जन्म में मुझे तू ही मिले, तेरे ही ममतामयी आँचल में सर रखूं।


मेरे लिए तो माँ हर दिन ही तुम्हारा दिन हो जाता है,

किस दिन कह दू माँ की ये सिर्फ तुम्हारा दिन होता है।


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