मंज़िल और सिफारिशें
मंज़िल और सिफारिशें
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे,
मैं खुद से खुद में देखना चाहूँगा !
है मुश्किलें बहुत इनमें, पर मंज़िलों को,
एक ऐसे ही पाउँगा !
है डगर मुश्किल पर कहाँ कुछ आसान होता है ,
कोशिशें तो हर दिन सपनों को एक
नया आयाम देता है |
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे.....
न दिखने वाले काटें होते हैं, इस राह पे,
छू के जो निकल जाये ऐसी डर की
सोच भी होगी इस राह पर !
दूर से ही चुभती बातों का अंबार सा लगा होगा,
फिर भी हिम्मत कभी न इस दिल में कम होगा |
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे.....
फिर से लौटना होगा हमे अपने राह में,
है राहगीर बहुत से अपनी ताक में !
कुछ उनकी सुननी होगी कुछ अपना सुनना होगा,
जो कुछ रुका था, उसे पथ में आगे ले जाना होगा |
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे.....
चल पड़े अपनी सोच की ऊंचाइयों को साथ लिए,
चुन लो तुम भी कुछ अपनी चाह से यहाँ !
चलो करेंगे पूरा उस सोच को अपने काम से,
जीत लेंगे हर मुश्किल को भी अपने राह में |
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे.....
न किसी ने रोका है, न रोक पायेगा,
इस बढ़ते कदम को,
चुनौतियाँ कभी कम न होगी , ये जान लो !
कि क्यों सोचते हो की, सफलता कब मिल पायेगी ,
तू सोच ले तो, हर कामयाबी तेरे कदम को चूम ले जाएगी |
सिफारिशों की चाह कहाँ है मुझे.....
