शिव पार्वती विवाह-अनोखी कहानी
शिव पार्वती विवाह-अनोखी कहानी
भगवान शिव का विवाह था बड़ा अद्भुत और अनोखा,
न ऐसे बाराती देखे और न ऐसा वर, किसी ने था देखा,
बड़ी मनोरम, शिव पार्वती विवाह की अनोखी कहानी,
शिवजी थे भोले भंडारी, माता पार्वती महलों की रानी,
जीवन सुख त्याग पार्वती, वैरागी शिव की हुई दीवानी,
कठिन तप में लीन हुई पार्वती, शिव को पाने की ठानी,
प्रेम की अद्भुत शक्ति से, संपूर्ण हुई तपस्या पार्वती की,
शिव का भी ख़त्म हुआ इंतज़ार, घड़ी आई मिलन की,
बोली पार्वती शिव से, विवाह प्रस्ताव लेकर घर आना,
माता-पिता से मेरा हाथ मांग कर, वरण कर ले जाना.
तय हो गई विवाह की बात, शिव जी की बारात सजी,
भूत प्रेत थे जिसमें शामिल सभी देवता और असुर भी,
कीड़े मकोड़े, सभी जानवर, विक्षिप्त लोगों की जाति,
बड़े से बड़े छोटे से छोटे लोग,शिव जी के बने बाराती,
वैरागी शिव जाने न विवाह संबंधी, कोई रिती रिवाज़,
हल्दी रस्म में भभूत लगा बोले भभूत ही तन का साज,
न स्वर्ण आभूषण, न साज-सज्जा,न ही किया श्रृंगार,
तन भभूत लगाकर निकल पड़े, नंदी पर होकर सवार,
मैना, पर्वत राज ने, विवाह का किया भव्य आयोजन,
भव्यता से पुत्री का विवाह करने का बड़ा उनका मन,
स्वर्ण, पुष्प और बहुमूल्य रत्नों से, सजा स्वागत द्वार,
बड़ी उत्सुकता के साथ करने लगे बारात का इंतजार,
सर्वप्रथम ऋषि, देवता गण आए मैना देख मुस्कुराई,
शिव की वर रूप में एक सुंदर छवि मन में उतर आई,
किंतु यह क्या भूत पिसाच देखकर डर गई मैना रानी,
उनके बीच, भभूत धारी शिव को देख, मौन हुई वाणी,
स्वागत द्वार पहुंँचे शिव, जब शगुन देने की आई बारी,
शगुन किसको कहते हैं समझ ना पाए वो डमरू धारी,
देना होता इसमें अपनी कोई प्रिय वस्तु है यह रिवाज़,
जो भी आपके पास है,वो देकर सम्पूर्ण करो ये काज,
शिव बोले यह नाग मुझे है प्रिय इसी को ले लो शगुन,
थमा दिया हाथों में नाग, होठों पर प्यारी मुस्कान बुन,
देखकर ऐसा रूप, मैना को पार्वती की चिंता हो आई,
कैसे सौंप दूँ ऐसे वर को पुत्री, सोचकर मूर्छित हो गई,
होश आया जब वही रूप आंँखों में बसा भभूत धारी,
कैसे रहेगी वैरागी संग, राज सुख में पली राजकुमारी,
शिव हो गए तैयार साज-सज्जा को देख मांँ की चिंता,
स्वयं विष्णु ने अपने हाथों, श्रृंगार किया तब शिव का,
वस्त्र, आभूषण पहन सुसज्जित हुए परंपरा अनुसार,
संपूर्ण ब्रह्मांड में ना हुआ होगा किसी का ऐसा श्रृंगार,
देख अनुपम रूप, मैना को गलती का आभास हुआ,
सौभाग्यशाली है पुत्री पार्वती मेरी जो ऐसा वर मिला,
तब जाकर संपन्न हुआ विवाह शिव और पार्वती का,
सबसे अनुपम, अनोखा विवाह यह पुरुष प्रकृति का।