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Er. Suchismita Satpathy

Classics

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Er. Suchismita Satpathy

Classics

याद नहीं मुझे

याद नहीं मुझे

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याद है मुझे,

जब पहली बार मिले थे,

चुराते थे वक्त बात करने के लिऐ।


याद है मुझे,

मायूस होते थे जब वक्त निकल जाता था,

याद है मुझे।

आंखों में आंसू आ जाते थे बिछड़ ने के डर से।


याद है मुझे।

शब्दों को संजोते थे शिद्दत के साथ, रूह को छुने के लिए।

याद है मुझे।

खुद को कोष ते थे जब मिल नहीं पाते थे, 

कभी कभी तो दूर बैठ के निहार लेते थे, दिल की सुकून के लिए,

याद है मुझे,

नजाने कब वक्त बदलसा गया,

याद नहीं मुझे।


कब आसमान मैं चांद भी दो हो गये,

याद नहीं मुझे।

कब शब्दों के अल्फाज कहीं खो गए,

याद नहीं मुझे।


बातों के लिए वक्त कहीं खो से गए।

चेहरे धुंधले से होते गए,

याद नहीं मुझे,

कब मुस्कान छुटते गये,

और आंखें भरती गई।


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