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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics Inspirational

4.5  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics Inspirational

सामन्जस्य

सामन्जस्य

1 min
391


शब्दों की कोई जात

नहीं कोई पात नहीं

कोई औकात नहीं

फिर भी इन शब्दों के

द्वारा दुनिया भर की

जात पात को चोटिल

करना घायल करना जारी है


इन शब्दों के माध्यम से

जाने क्युं अनजाने में

कभी कभी तो भड़काने को

ऐसे ऐसे कड़वे कड़वे

विष उगले जाते हैं


जिस विष के वितरण से

न जाने कितने मासूम हृदय

असमय ही काल गाल में जाते हैं

शब्दों से ही फिर उनकों सद्भावों

की मरहम पट्टी की जाती है

जो चले गए जो छल्रे गए

क्या उन घावों की कभी

आपूर्ति हो पाती है


सोच बदल लो शब्द बदल लो

मानव हैं अपने जैसे है

हैं भाई नही फिर भी भाई जैसे

इसीलिए ये कटुता के भाव

बदल लो इसी धरा पर रहते हैं


इसी धरा पर रहना है

फिर बीज घृणा के उनके लिए

किस कारण से बोना है

फिर बीज घृणा के उनके

लिए किस कारण से बोना है।


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