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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

अंदाजे बयां (५)

अंदाजे बयां (५)

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हमको तो ‘परिमल’ मिला, घर जैसा विश्राम

जिसका मैं मेहमान हूँ, उसका आराम हराम। 


तटनी पर प्यासे पड़े, सिंधु भी अति मजबूर

हम मंजिल के पास हैं, और मंजिल हमसे दूर। 


द्वार अविमुक्त है, झरोखा भी असहाय

मेरे सर पर धूप भी, कोने से आय। 


तेरे बस का यह नहीं, इसका तू पीछा छोड़

यादों की चिड़िया उड़ गई, तृष्णा का पिंजड़ा तोड़। 


कहकर टाले मुझे, सूचिक मुझे हर बार

काट – छांट की देर है, लंगोट है तैयार। 


अब तक तो मीठे लगे, मेरे कड़वे-कड़वे बोल

वितरण विभाजन में हो गई, मंसा सबकी डाँवाडोल। 


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