फिर भी …… हमेशा
फिर भी …… हमेशा
गुथे हुए हैं प्राणों से कुछ
निर्वाक वैरागी से पतझड़
खलती हैं मुझको तुम्हारी यादें
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।
राहों का सहचर सूनापन है
आँसू और अकेलापन है
वियोगिनी-सी दिल की धड़कन है
निर्जन वन-कानन में चलते-चलते
कामना थकी पर पाँव न थके मेरे
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।
जगी-जगी हैं दीप्तिपूर्ण रातें
सुबकती है झम-झम बरसातें
खोयी-खोयी सी अनंत सौगातें
जल-जलकर बुझी हैं अभिलाषाएं
दग्धित रही अँगारों-सी जिंदगी
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।
खानाबदोशों जैसी भटकन है
रेगिस्तानों जैसा अंतर्मन है
आकुल आशा घर आँगन है
घायल हो श्रापित-सी जिंदगी
रह-रहकर दुख रही चोटिल अंगों-सी
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।