स्त्री का जीवन
स्त्री का जीवन
स्त्री के जीवन मेंं क्या है ऐसा,
आनंद से जीने जैसा।
होती हैं जब बच्ची,
केहालाती हैं गुड़िया।
बडी हो जानेपर,
पहनाते चूडिया।
शुरु हो जाती हैं कहाणी,
उसके संघर्ष की।
ना सूनी थी बाते कभी,
उसने स्त्री विमर्ष की।
जीवन से लढते लढते नंन्हे का हात,
आता हैं जब हाथ मेंं।
सोचनी पडती हैं उसके,
जीवन की बात भी साथ में।
सबसे लड़ते-लड़ते
देती हैं जब साथ उसका।
जब तक ओ बडा ना हो जाए,
क्या इसिलिये संभाला था की।
बहु आनेपर ऊसेही बेघर कर पाये।
प्यार उसे न मिला बचपन में,
ना बडी हो जाने पर।
हर जग मिलती थी,
सिर्फ ठोकर ही ठोकर।
क्या उसे जिने का अधिकार नहीं,
या प्यार पाने का।
क्यू किया जाता है कतल,
उसके हर अधिकार का।
बचपन में तो काहलाती हैं।
वह गुड़िया।
फिर उसे कहते हैं,
उसके बच्चे ही बुढ़िया।।