भ्रष्टाचार....
भ्रष्टाचार....
माता पिता ने पढ़ा लिखाकर,
तुम को अफसर बनाया।
आज देखकर लगता हे की,
सबसे बड़ा एक गुनाह किया।
रिश्वत लेने से अच्छा था,
भिक्षा लेकर जी लेते।
मुंह खोलकर मांगे पैसे,
बेहतर ओट तुम्ही से लेते।
लाखों का धन है तो भी,
क्यों आज भिखारी बन बैठे।
भूल गये बचपन में,
तुम भी खिलौना देख रो देते थे।
आज कैसे उन नन्हे हाथों से,
खेलने का हक ले बैठे।
एक आदमी अपना पेट काटकर
अपना घर चालता है।
खून पसीना बहाकर ,
मेहनत की रोटी खाता है।
खुद भूखा सो जाता है,
पर बच्चों की रोटी लाता है।
तू उनसे छिनने वाला,
जाने कैसे जी पाता है.......
