क्या आत्मा तुम्हारे पास नहीं!
क्या आत्मा तुम्हारे पास नहीं!
उठ नारी अब जाग यहाँ
अब कोई नहीं आएगा
ना कोई कृष्ण सखा जैसा बनने पाएगा
और ना ही तेरा चीर हरण रुक पाएगा..!!
इसलिए तुझे ही बांहों में
अपने बल को भरना होगा
अपने लिए तुझे ही शस्त्र यहाँ उठाने होंगे
नहीं तो कदम कदम पर तुझको
दुनिया वाले निर्वस्त्र करते जाएंगे..!!
हुंकार तुझे भरनी ऐसी
कि नजदीक तेरे आने से पहले
सौ बार तुझे वो सोचे
मजबूत कर परिधि अपनी
ना प्रवेश कर सके बिन अनुमति उसमें...!!
जब चाहे वो फेंके तेजाब तुझ पर
जब चाहे बनाये शिकार हवस का
तू चीज नहीं कोई ऐसी
जो समझ कर खिलौना खेल गया..!!
तेरा भी इक ओहदा है
तू भी उस ईश्वर की एक अनुपम कृति है
तू ही दुर्गा चंडी है
फिर क्यों डरती कायर ऐसे लोगों से...!!
उठा कृपाण धड़ से अलग कर गर्दन को
मत कानून की तू परवाह कर
फैसला कर अपने हाथों से
निर्लज्ज जमाना क्या जाने...!!
फिर क्या घबराना इस दुनिया से
बहुत हुआ अब बहुत हुआ
अब बहुत जघन्य अपराध हुआ
सीमा लांघ चुके हैं कुछ नर...!!
उठ जा उठ जा अपनी शक्ति का निर्वाह कर
है नारी कोई सामान नहीं
वह हाथों का कोई जाम नहीं
जो पी कर फेंक दिया जाए
ऐसा कोई मर्दों का अधिकार नहीं..!!
पूज्य, ममतामई और करुणा की प्रति मूर्ति है नारी
कितने रिश्तों की धाती है
मां, बहन, भाभी और ना जाने
कितने रिश्ते निभाती है...!!
उसी नारी से उपजे हो तुम
और उसी को करते शर्मसार
क्यों कापी नहीं आत्मा तुम्हारी
क्या घर में मां बहन निवास नहीं
कि इंसान होकर किया तुमने
काम ये है मानुष वाला...!!
बोलो क्या आत्मा तुम्हारे पास नहीं
जो निर्वस्त्र घुमाया तुम ने मिलकर
गरिमामई उस अबला नारी की गरिमा को
है कोई जवाब पास तुम्हारे
आत्मा अपनी से पूछों
अपराध यह तुमने क्या कर डाला...!!
