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Anu Chatterjee

Tragedy

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Anu Chatterjee

Tragedy

फिर उठी वीभत्सी सी मैं

फिर उठी वीभत्सी सी मैं

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सिहरन और डर से आगे बढ़कर,

उठी वीभत्सी सी मैं.

मृदु गंगा सी पत्थरों को काट-काटकर,

फिर उठी वीभत्सी सी मैं.

मेरे जल-थल-आँचल में हुँकार सी ललकार थी,

फिर उठी वीभत्सी सी मैं.

ये समाज जो या तो स्त्री को वेश्या समझता हैया फिर उसे रखैल मानता है,

उस समाज के झूठे दोषारोपण के विरोध में,

फिर उठी वीभत्सी सी मैं.

कितनी गाथाएँ गढ़ ली इस पुरुषवादी समाज ने

दर-दर दरकिनार होती रही स्त्रियाँ,

रिश्तों को संजोये रखने के लिए...

उन्हीं रिश्तों में घुटती रही स्त्रियाँ.

उनमें लल्कार के तेज़ की कुछ छींटे छीटने के लिए,

फिर उठी वीभत्सी सी मैं.

अब तो मनभेद भी होने लगा

इन मतभेदों के चलते. 

कुछ कदम न्याय के वास्ते उठाने के लिए,

फिर उठी वीभत्सी सी मैं.

उस जल-थल-आँचल में जो भूचाल उठ रहा है,

वो भी जन्म लेती है एक वीभत्सी के क्रोध से.

अपने मन के क्रोधाग्नि में अब सब भस्म करेंगी स्त्रियां 

अब उठेंगी वीभत्सी सी ये स्त्रियाँ.

भस्म को आभूषण बनाकर पहनूंगी मैं लिबास अपना

और केवल मैं ही नहीं ये कर्म करेंगी सभी स्त्रियाँ,

न कोई विलाप, न कोई संताप

अब तो वीभत्सी सी सजेंगी स्त्रियाँ

पुरुष के दुराहंकार का दमन करेंगी स्त्रियाँ,

इसलिए फिर उठेंगी वीभत्सी सी स्त्रियाँ!


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