परिवार
परिवार


जुड़ते हैं जब हाथों से हाथ,
परिवार संगठित हो जाते हैं,
ढ़ाई अक्षर प्रेम का हर दिल
में जो लिखा जाये,
परिवार स्वर्ग से बन जाते हैं,
भाई भाई में प्रेम अगर हो,
कोई दीवार जुदा नहीं कर
सकती,
पिता के कंधों को मज़बूती,
जिगर को ताकत है मिलती,
जवान बेटों को संग देख,
पिता की छाती चौड़ी हो जाती I
माँ की ममता को चार धाम
का सुख,
घर में ही मानो मिल जाता,
सपनों का बागीचा हरा भरा हो
खिल जाता,
बुरे वक्त में परिवार बंद मुट्ठी
सा आपस में मिल जाता,
आँधी तूफानों से लड़ने का
जज़्बा दिलों में हिम्मत बंधाता।
किन्तु टूटते बिखरते परिवार
आज बढ़ रहे,
संगी साथी बिछड़ रहे,
स्वार्थ की चादर ओढ़े,
सब अपनी धुन में ही
मस्त जी रहे,
प्यार की परिभाषा आज बदल
रही है,
दुनिया मतलब के मलबे के
नीचे दब रही है।
टूट रही हैं दीवारें प्यार की,
स्वार्थ और लालच की दीवार
घरों को बाँट रही,
ट
ूट रहे हैं प्यार के वादे,
ईंटों की दीवारों से,
सूख रहे हैं पत्ते, सपनों के
बागानों के,
जल रही चितायें प्यार के
अरमानों की,
कागज़ की गड्डियां दिलों में
बस रहीं,
प्यार की पतंगों की डोरी
सारी कट रहीं।
हो गये चकनाचूर सपने माता
पिता के अरमानों के,
कि सपनों का महल बनायेंगे,
बनकर दादा दादी गूंजती
किलकारियों के बीच,
अपना बुढ़ापा, ख़ुशियों से
बितायेंगे।
किन्तु दिलों के अरमां दिलों
में ही रह गये,
फासले दिलों के दरमियान
इतने बढ़ गये,
कि भाई भाई जैसा ना रहा,
बेटा बेटे जैसा ना रहा,
प्यार की ताकत कागज़ों ने छीन ली,
जो सबका था मेरा तेरा हो गया,
बंट गई दौलत, ज़मीन के टुकड़े
हो गये,
अपने बीबी बच्चों के संग,
परिवार पृथक हो गये,
रह गये एक कमरे में सिर्फ़
माता पिता,
सबने दौलत मांगी, ज़मीन मांगी,
बूढ़े माता पिता अपना नंबर कब
आयेगा सोचते ही रह गये।