Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

ढूंढ़ रही हूँ मैं अपना वजूद

ढूंढ़ रही हूँ मैं अपना वजूद

1 min
494


खो गई मैं कहीं ढूंढ रही हूँ, मैं अब अपना वजूद,

हर धड़कन में मैं बसती थी, कहाँ गया मेरा वजूद,


मैंने तुम को ज्ञान दिया, जीवन का हर पाठ दिया,

भूला कर मेरी चाहत को, तुमने मुझे बिसरा दिया,


मेरा ज्ञान तुम्हारी हर पीढ़ी की रगों में समाया है,

जानती हूं मैं डिजिटल का ज़माना अब तो आया है,


मेरा जीवन समाया है अनगिनत ग्रंथों और कथाओं में,

बसती हूं मैं रामायण, गीता, बाइबल और कुरान में,


मेरे जीवन का नहीं कोई अंत है, ना भूलो तुम कि,

अ आ इ ई से लेकर जीवन पर्यन्त मेरा अस्तित्व है,


जब मैं श्वेत वस्त्र के साथ निःशब्द आती हूँ,

तब तुम्हारे विचारों को अपने अंदर समाती हूँ,


अपने मन की भावनाओं को मेरे तन पर रंग जाते हो,

और बड़े बड़े लेखक और लेखिका तुम बन जाते हो,


भूलो ना वह प्यार हमारा, जो सदियों से तुम को बांटा है,

तुम्हारे जीवन का हर पन्ना, इतिहास बन मुझ में ही समाता है,


छोड़ोगे जो साथ हमारा, इतिहास कहां लिख पाओगे,

नई पीढ़ियों को, भूतकाल का सफ़र कैसे समझाओगे,


इतिहास ही है वह ज़रिया, जो भूल हमारी हमें बताता है,

ग़लती फ़िर से ना दोहराए, यह सबक हमें समझाता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational