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Ratna Pandey

Inspirational

4.5  

Ratna Pandey

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जीती अस्तित्व की लड़ाई

जीती अस्तित्व की लड़ाई

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उसी दिन मेरा संघर्ष शुरू हुआ, जिस दिन मैं अस्तित्व में आई, 

बचेगा या मिटेगा अस्तित्व मेरा, विकट समस्या यह सामने आई, 

 

कहीं मिटा, कहीं बच गया, कहीं ख़ुशी, कहीं ग़म की थी परछाई, 

किसने दिया यह अधिकार, क्यों मेरे अस्तित्व की छिड़ी है लड़ाई, 

 

जन्म ले लिया मैंने फिर भी, समाज के साथ होती ही रही लड़ाई, 

कभी पक्षपात हुआ अपने ही घर में, जो चाहा वह मैं कर ना पाई, 

 

चकनाचूर हुए सपने कितने मेरे, मैं क्यों उनको सच कर ना पाई, 

भैया बन गया डॉक्टर मेरा, कमियाँ क्यों मेरे हिस्से में ही हैं आईं, 

 

विवाह के बंधन में बंध कर, फिर एक नई दुनिया में थी मैं आई, 

अपमान के कड़वे घूँट पीए, वहाँ सब को लगती ही रही मैं पराई, 

 

किसी ने ज़िंदा अग्नि दाह किया और किसी ने लातों से करी पिटाई, 

नारी

 के जीवन की क्या, केवल इतनी-सी ही होती है सिर्फ़ सच्चाई? 

 

बदल दिया समय का पहिया हमने, जान पर थी हमारी बन आई, 

बीत गईं वह घड़ियाँ, वह दिन, अब नहीं होगी कभी वैसी रुसवाई, 

 

बहुत सहा दादी और माँ ने, अब नारी अपने सच्चे अवतार में आई, 

भले देर हुई आने में, पर जीत ली उसने अपने अस्तित्व की लड़ाई, 

 

दुनिया भर में अपनी योग्यताओं का परचम उसने है अब दिखलाई, 

दांतों तले उंगलियाँ आ गईं, देख नारी ने कितनी लंबी छलांग लगाई, 

 

अब डरना नहीं है, झुकना नहीं है, आगे बढ़ने से हमें रुकना नहीं है, 

चकनाचूर ना होने देना, हमारे सपनों को हमें अब टूटने देना नहीं है, 

 

बदल गया नारी का जीवन अब तो यही है असली और नई सच्चाई, 

घमंड ना करे पुरुष यहाँ पर, अब तो नारी उसके समकक्ष है आई। 



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