मरा नहीं मैं ज़िंदा हूँ
मरा नहीं मैं ज़िंदा हूँ


इतनी हिम्मत, इतना हौसला, कितना विश्वास समाया है,
विधवा बन कर मेरी उसने, अपने हाथों में बंदूक उठाया है,
कितना डरती थी मेरी ख़ातिर, अब डर को मार गिराया है,
कठिन परिश्रम कर उसने, यह मुमकिन कर दिखलाया है,
यूँ ही नहीं हासिल होता, अपने तन को उसने जलाया है,
गदगद हो रही छाती मेरी, ऐसा जीवन साथी मैंने पाया है,
देख रहा हूँ ऊपर से, पत्नी ने मेरी सर पर कफन बाँधा है,
मेरे पद चिन्हों को उसने आज, कैसे अपने पैरों से नापा है,
कैसे किया होगा उसने, यह सब सोचकर घबरा जाता हूँ,
परंतु सफलता देख कर उसकी, मैं फूला नहीं समाता हूँ,
कितनी नाज़ुक लगती थी, जब मेरी बाँहों में खो जाती थी,
सुई भी जो चुभ जाए, उसकी चीख निकल कर आती थी,
इस तरह का ख़्याल आते ही, मन मेरा फिर मुरझा जाता है,
शहीद हो गया मैं, फिर भी वह वक़्त याद बहुत ही आता है,
कहता था हरदम उससे, अपने आँसू माँ को ना दिखलाना,
शहीद भी हो जाऊँ अगर मैं, वीर रस तुम आँखों से बरसाना,
है विश्वास मुझे यह, तुम सदा अपना पूरा कर्तव्य निभाओगी,
वक़्त पड़ा अगर तो तुम, अपनी जान पर भी खेल जाओगी,
गर्व होता है माँ पर भी, जिसके गर्भ से मैंने था जन्म लिया,
प्रेरणा से अपनी, माँ ने मेरी विधवा को भी फ़ौजी बना दिया,
मेरी हिम्मत और मेरा हौसला, उसकी रग-रग में समाया है,
मैं चला गया तो क्या, स्वयं से उसने रिक्त स्थान मिटाया है,
आज मेरी विधवा पत्नी को मैं, शीश झुकाकर नमन करता हूँ,
मरा नहीं मैं ज़िंदा हूँ, उसके हौसले में मैं ही मैं तो दिखता हूँ।