क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया


ढूँढ रहे हैं बच्चे वह मनभावन साथ, जो कहीं पर खो गया है,
क़ैद हो गए घर के अंदर, संपर्क सभी अपनों से छूट गया है,
प्रत्यक्ष टीचर का समझाना, कंप्यूटर के अंदर बंद हो गया है,
डांटना, फटकारना, वो शरारत का ज़माना ओझल हो गया है,
हॉकी, कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल का मैदान, सपना हो गया है,
घर की चारदीवारी में बचपन सिमट, खेलों से वंचित हो गया है,
बहुत कुछ खो गया है हमारा, इस कोरोना के भयावह काल में,
जीवन के सबसे सुनहरे पल, फँस गए हैं महामारी के जाल में,
कहीं अभिभावक हैं चिंतित, पढ़ाई भी पहले-सी कहाँ हो रही है,
कैसे बिठायें कंप्यूटर के समक्ष, एकाग्रता बच्चों की खो रही है,
किसी के पास लैपटॉप नहीं, कहीं इंटरनेट की तंगी हो रही है,
कैसे पढ़
ें छोटे मोबाइल से, कठिनाइयों से आँखें चार हो रही हैं,
इस कोरोना ने बच्चों को भी नहीं छोड़ा, उन्हें जमकर सताया है,
लगा कर स्कूलों में ताले, बढ़ते कदमों को उनके ब्रेक लगाया है,
खो गए हैं जो सुंदर लम्हे, वह वापस कभी भी मिल ना पाएंगे,
सकारात्मक सोच हो अगर, तो समय से ख़ुशियाँ चुरा के लाएंगे,
माता-पिता का साथ, जो पहले कभी समय सीमा में क़ैद था,
पहले तो उनके इंतज़ार में दिल, रहता हमेशा ही बेचैन सा था,
माता-पिता का साथ, प्यार-दुलार, इस दौरान भरपूर पाया है,
वर्क फ्रॉम होम ने, यह सुनहरा अवसर परिवार को दिलवाया है,
ये पीढ़ी ऐसी नहीं कि कोरोना जैसे तूफ़ानों के आने से थम जाए,
संभव है बढ़ा रफ़्तार कदमों की, समय से आगे वे निकल जाएँ।