संविधान के अधीन जीवन बिताएँ!
संविधान के अधीन जीवन बिताएँ!
ये निःशब्द सी प्रकृति भी तेरे अधीन है,
सारी दुनिया है तेरे वश में सब तेरे अधीन है।
समंदर आज भी खड़ा है, सीमा लांघी नहीं उसने,
सूरज आज भी समय का पक्का, सुस्ती की नहीं उसने।
अंधियारा आज भी डरता है, उजियाला आज भी है रोशन,
चौपाये आज भी सुनते हैं अपने स्वामी की आवाज़,
ये निःशब्द सी प्रकृति भी तेरे अधीन है,
सारी दुनिया है तेरे वश में सब तेरे अधीन है।
पौधे आज भी उगते हैं, कलियाँ आज भी खिलती हैं,
नदियों की दिशा वही, कल-कल आज भी बहती हैं।
अंबर आज भी ऊँचा है, तारे आज भी सजते हैं,
तड़के कुप्पियाँ किरणों की, रंगोली आज भी रचती हैं।
ये निःशब्द सी प्रकृति भी तेरे अधीन है,
सारी दुनिया है तेरे वश में, सब तेरे अधीन है।
क्यों ना हम भी अपने लोकतन्त्र को कुछ इस तरह पहचानें,
आज़ादी से तो जीयें पर तेरी आज्ञाओं को मानें।
क्यों ना हम भी मिलकर ऐसा एक प्यारा राष्ट्र बनाएँ,
जैसे मूक सी ये प्रकृति, विधाता के अधीन है,
हम भी अपने संविधान के वश में जीवन बिताएँ
आइए अपनी आज़ादी को कुछ इस तरह मनाएँ!