सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं!
सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं!
सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं,
अपनी देह तुड़वा के लहू की नदियाँ बहा के,
तू ख़ुद ही सूली चढ़ गया प्रेम अपना दिखा के,
सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं भला क्या चढ़ाऊँ मैं!
अब कुछ न बाक़ि रह गया जो तुझको करूँ अर्पण,
तू महान तू विशाल तू सामर्थी परमेश्वर,
क्रूस पर तेरे लहू की धारा बार-बार पुकारती है,
तेरे ख़ातिर शापित मैं बना, छुड़ाया लहू मोल देकर,
सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं!
इतना दर्द इतना दुःख तुझे अकेले ही सहना था,
पूरी दुनिया के बोझ को अकेले ही ढोना था,
तू योग्य तू पवित्र फिर भी ख़ुद ही सब कुछ सह गया,
अपने लहू से धो के मेरी आत्मा को निर्मल कर गया,
मुझ पापी को निष्कलंक कर गया,
तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं भला क्या चढ़ाऊँ मैं!
आज तुझसे एक वरदान ख़ुदा और चाहूँ मैं,
जब तक जीऊँ तेरे बलिदानों को गाऊँ मैं,
तेरे विश्वास में ये पूरी उमर गुजारूँ मैं,
जयजयकार करूँ तेरी प्रशंसा करूँ तेरी,
जैसे तूने ख़ुद को दे दिया,
वैसे ख़ुद को तुझपे लुटाऊँ मैं
सोचूँ तुझे क्या चढ़ाऊँ मैं भला क्या चढ़ाऊँ मैं!