आओ प्रकृति के पास चलें।
आओ प्रकृति के पास चलें।
आओ प्रकृति के पास चलें।
आओ प्रकृति के पास चलें।।
झरने का गर्जन, नदियों की कल-कल,
तालाब सा शीतल, झील सा निर्मल;
ज़रा पूछें उसका मिज़ाज चलें,
आओ प्रकृति के पास चलें।
मैदानों का ओढ़ना बनी बूटेदार हरियाली,
ऊपर नीला गगन, किसने चादर तानी मतवाली;
जरा देखें उसका स्वभाव चलें,
आओ प्रकृति के पास चलें।
माहौल में मधु पंछियों का,
हवाओं में सरगम शांति का;
साँसों से भीतर उतार चलें,
आओ प्रकृति के पास चलें।
कुदरत का ये यौवन शाश्वत,
किरणों से चंगाई जीवन कर;
उस महान शक्ति से मिलाप चले,
आओ प्रकृति के पास चलें।
सजीव नहीं वो ऊँची इमारतें,
शहरों की भीड़,चिमनी से उठते धुएँ;
क्यों न इस विषैली विपत्ति से,
अपनी वसुधा को संभाल चलें;
आओ प्रकृति के पास चलें।
आओ प्रकृति के पास चलें।।