काशवी की जिद
काशवी की जिद
हम आपस में अक्सर
झगड़ पड़ते हैं
कि आप काशवी को
जिद्दी बना रहे हो
इतनी रात में खेलना –बंद करो
मेरी तो सुनती ही नहीं
काशवी पर चिल्लाती है
और काशवी पापा –पापा
कहते मुझे गले लगा लेती है
मैं चाहता हूँ
काशवी जिद्दी बने
वो अड़े वो चुने
वो मनचाही करे
वो तय करे
अपने खेल अपना समय
वो जिद करे
वो अपनी जिद गढ़े
अपने तर्कों को पैना करे
वो ठान ले तो ठान ले
वो लड़े वो मनवाए
वो बदले हमको भी
औरो को भी
और खुद भी
वो जिद के लिए जिए
मुझे यकीन है
उसकी जिद
जरूरी है
उसके लिए–उसे
उस से मिल जाने के लिए
उसके आस-पास की
दुनिया के लिए
ये जो दौर है
ये बदलाव से बैर खाए बैठा है
समय जो आगे ही बढ़ता है
और जमाना खुद को रोककर
पीछे ही होता जा रहा है
बिना दौड़े अब ये हाथ ना आएगा
जिद करनी ही होगी
जिद जो
बदलाव लायगी
बदलाव के साथ जीना सिखाएगी
मैं काशवी की जिद को रोकना नहीं
उसको सींचना चाहता हूँ
२१वी सदी जिद्दियों के लिए है
जो जिद नहीं कर सकता
वो जीवन से पलायन कर ले
जिद ही है जिन्दगी
जिन्दगी के मायने
तो अभी से क्यूँ नहीं
चल काशवी
जिद कर और पूरी कर।