काला मुंह हो जाने में
काला मुंह हो जाने में
चालाकी से अपना मीठा ,
मुँह कर लो पर याद रहे।
देर कहां लगती है लोगों ,
काला मुंह हो जाने में ।।i
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चालाकी याने छल करके ,
अपराधी बन जाना है ।
चालाकी से दुराचार कर,
के पापी कहलाना है ।।
चालाकी से प्रतिरूपण कर ,
जब कोई लूटा करता ।
चालाकी से भ्रष्ट आचरण ,
कर कोई जब घर भरता।।
ताकत उसे लगाना पडती,
अपना किया दबाने में ।
देर कहां लगती है लोगों ,
काला मुंह हो जाने में ।।
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चालाकी से उजले चेहरे ,
पाते हैं सम्मान मगर ।
पर्दा उठ जाने पर हालत ,
उनकी हो जाती बदतर।।
जगह कुशलता की लोगों,
कब चालाकी ले पाती है ।
शिखरों पर तो सदा कुशलता,
ही परचम लहराती है ।।
काम योग्यता प्रथम पंक्ति में,
आती जगह बनाने में।
देर कहां लगती है लोगों ,
काला मुंह हो जाने में ।।
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"अनन्त" छोड़ें चालाकी हम ,
करें परिश्रम सुख पाएं ।
स्वेद बहा कर रेखा अपनी ,
बड़ी करें आगे जाएं ।।
तभी शिखर पर लोगों रुकने,
का कमाल कर पाएंगे।
हंसते हंसते जीवन नौका ,
को उस पार लगाएंगे ।।
दूर रहें हम चालाकी से ,
आये ना बहकाने में ।
देर कहां लगती है लोगों,
काला मुंह हो जाना में ।।
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