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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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इसीलिए है संघ जरूरी

इसीलिए है संघ जरूरी

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एक एक ग्यारह होते हैं

फूट पड़ी जिनमें रोते हैं

ताकत मिलने से बढ़ जाती


यही संगठन है कहलाती

उंगली एक फकत धमकाती

मुट्ठी से दुनिया हिल जाती

विपदा की बरखा में छत है


देती ये सबको राहत है

आँखें कभी चार हो जाती

कहाँ किसी से फिर घबराती

दो जब एक कहीं बन जाते


ऊँचे पर्वत शीश झुकाते 

तन्हा डाली तोड़ी जाती

चार मिले तो टूट न पाती


धागा चादर बन इठलाता

तोड़ उसे कब कोई पाता

जब ईंटें दीवार बनाती

सौ चोंटों से टूट ना पाती


पौधा एक मान कब पाता

जबतक बाग नहीं कहलाता

कब दंगा रोने से रुकता

पर सम्मुख ताकत हो झुकता


"अनन्त" ताकत ही है धूरी

इसीलिए हैं संघ जरूरी।


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