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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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हमको भी परिवार प्रिय है

हमको भी परिवार प्रिय है

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हम मजदूर हमें मत रोको,

मजदूरी दो घर जाने दो।

हमको भी परिवार प्रिय है,

संकट में हैं, मिल आने दो।।


जितना भी रखना है रख लो,

बंद वंद हमको तो छोड़ो।

राहत पाने निकल पड़े हम,

राह हमारी अब ना मोड़ो।।


अबतक सितम किये हैं तुमने,

जो जो हमने सब झेले हैं ।

जान हथेली पर लेकर हम,

अपनी जानों से खेले हैं ।।


अरमानों के गुल जीवन में,

मुरझाए हैं खिल जाने दो ।

हमको भी परिवार प्रिय है,

संकट में हैं, मिल आने दो।।

आए थे हम पेट भरेंगे,

और बचा कुछ ले जाएंगे ।

ले जाना तो दूर रहा अब,

रोज सोचते क्या खाएंगे।।

मुफ्त बांटते खाना देखा,

पर वो भी हमतक ना आया।

बांट दिया अपने अपनों में,

हमने तो आश्वासन पाया।।


इस पर भी रेहबर ना चाहें,

कोई उनको उल्हाने दो ।

हमको भी परिवार प्रिय है,

संकट में हैं, मिल आने दो।।


पहले कहा छोड़ देंगे घर,

दड़बों में फिर जबरन ठूंसा ।

निकले सड़कों पर तो डंडे,

खाए या फिर थप्पड घूंसा।।


कभी लगाई ऊठक बैठक,

रेंगे कभी बने हैं मुर्गे,

तार तार इज्जत की लेकिन,

क्या करते थे खाकी गुर्गे।।


पेटभराई शुरू कहीं हो,

कहीं कदम ये ठहराने दो।

हमको भी परिवार प्रिय है,

संकट में हैं, मिल आने दो।।

कटें रेल से या सड़कों पर,

फिक्र हमारी किसको होगी।

भुला दिए जाएंगे जल्दी,

सत्ता बनी रहेगी रोगी।।


राजनीति इस विनाश काले,

सत्ता छोड़ नहीं पाई है।

मोहरों सा खेला है हमको,

पीर हमारी ठुकराई है।।


करते हैं जो लोग नेकियां,

"अनंत"हमतक पहुंचाने दो।

हमको भी परिवार प्रिय है,

संकट में हैं, मिल आने दो।।


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