एकलता में सकलता
एकलता में सकलता
मानव प्राणी है अबोध-सा
जीवन को बनाया है प्रतिशोध-सा
प्राचीनतम वह सकल था
सकल थीं उसकी सर्व बलाएँ
रुष्ट उसने पृथ्वी को किया
पृथ्वी ने भी प्रतिशोध लिया
हुई सकलता मानव की भंग
पूर्ण रुप से हुआ विलंब
समय ने फिर पलटा खाया
मानव को अन्यत्र बनाया
महामारी के लिए चेेताया
मानव को पर समझ न आया
तभी विचार निज मन में आया
एकल ही है
सकल सिखाया
तभी मानव सुुुरक्षित हो पाया॥
