सद विचार
सद विचार
भाग्य के दरवाजे पर सर पीटने
से बेहतर है कर्मों का तूफान पैदा
करो...सारे दरवाज़े खुल जाएंगे।
अकर्मण्यता हर दृष्टिकोण से सब
से बड़ा अभिशाप एवं दोष है।
सिर्फ भाग्य को ही दोष देते रहना
और कर्म ना करना,यह ना केवल
हमें मानसिक एवं सामाजिक रूप
से दरिद्र बना देता है, बल्कि पूर्ण
वैचारिक शून्यता उत्पन्न करते हुए
हमारी सोच एवं तर्क शक्ति को भी
कुंद कर देता है। हम सिर्फ अपने
भाग्य को कोसते हुए खुद ही अपने
लिए प्रगति के द्वार बंद कर लेते हैं।
सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए
पूरे मनोयोग से निरंतरता के साथ
कर्म करते हुए हमको अपने भाग्य
का स्वयं ही निर्माण करना है।
