दुश्मन ना आँख उठाने पाये
दुश्मन ना आँख उठाने पाये
जिगर पे जब ,दुश्मन का लोहा खाया होगा।
माँ भारती ने भी दामन, अपना सजााया होगा।।
अश्क तो छलक आये होंगे' बेरहम मौत के भी-
जब रो-रोकर तिरंगे ने, उसे गले लगाया होगा।।
दुश्मन ना आँख उठाने पाये, वतन जान से प्यारा है
संगीन पे रखके सर सो जायें,तन-मन देश पे वारा है
जब याद सताये अपनो,की बेचैन बहुत हो जाते हैं
लगे सुहानी डांट पिता की, लोरी में खो जाते हैं
बहना के संग आँख मिचौनी,भैया का मिला सहारा है
दुश्मन ना आँख उठाने पाये, वतन जान से प्यारा है
सजा थाल में दीपक प्रियवर,चंदन का तिलक लगाती है
आँखों में अश्क छलक आएँ, सौभाग्य पे वो इतराती है
बनु शहीद की विधवा चाहे, सब कुछ तुझ पे वारा है
दुश्मन ना आँख उठाने पाये, वतन जान से प्यारा है
वो मासूम-मासूम से चेहरे, आँगन की वो अठखेलियाँ
पापा घर जल्दी आ जाना ,हैं दर्द भरी वो पहेलियाँ
बीत गया कब उनका बचपन,ना अँगुली का मिला सहारा है
दुश्मन ना आँख उठाने पाये, वतन जान से प्यारा है
दुश्मन सर पे चढ़ आये तो, बाजी वो जाँ की लगाते हैं
कर जाते वतन के नाम जवानी, लिपट तिरंगे में आते हैं
आँसू सबको दे जाते हैं, शहादत का हसीं नजारा है
दुश्मन ना आँख उठाने पाये, वतन जान से प्यारा है।
संगीन पे रखके सर सो जायें, तन मन देश पे वारा है।।
