एक हिन्द का सिंह घेरकर
एक हिन्द का सिंह घेरकर
जिगर पे जब उसने,दुश्मन का लोहा खाया होगा।
माँ भारती ने भी अपना,दामन सजाया होगा।।
अश्क तो छलक आये होंगे' बेरहम मौत के भी 'देव'
जब रो-रोकर तिरंगे ने,' उसे गले लगाया होगा।।
एक हिन्द का सिंह घेरकर, चीनियों ने उत्पात किया
भूल गये मर्यादा सारी, जिगर पे फिर आघात किया
जसवंत नाम 'सिंह' का ठहरा,उम्र अभी बस कितनी थी
करुँ वतन के नाम जवानी, हसरत बस इतनी सी थी
कफन सजाया है अब सर पर, लब पे हिन्दुस्तान लिया
एक हिन्द का सिंह घेरकर, चीनियों ने उत्पात किया
इतने सारे शृगालों ने जब 'सिंह' हिन्द का घेरा था
डटा रहा सरहद का प्रहरी,कर रहा घातक वार भतेरा था
बढने ना दूँ दो कदम भी आगे,रणचंडी का दामन थाम लिया
एक हिन्द का सिंह घेरकर, चीनियों ने उत्पात किया
एक अकेला वीर हिन्द का,दुश्मन की थी संख्या भारी
किया आज आह्वान वतन ने, जान तुम्ही पे है वारी
आँखों में अक्श लिये माँ का,अन्तिम था प्रणाम किया
एक हिन्द का सिंह घेरकर,चीनियों ने उत्पात किया
लड़ा बहुत वतन की खातिर,दुश्मन के छक्के छुड़ा दिये
लगे भागने देख मौत को,कुछ को तोपों से उडा दिये
गिर पड़ा सिंह धरती पर फिर, हाथों में तिरंगा थाम लिया
एक हिन्द का सिंह घेरकर, चीनियों ने उत्पात किया
एक हिन्द का सिंह घेरकर, चीनियों ने उत्पात किया
भूल गये मर्यादा सारी, जिगर पे फिर आघात किया !
