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शायर देव मेहरानियां

Abstract

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शायर देव मेहरानियां

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अब तक हैं कितने दर्द सहे

अब तक हैं कितने दर्द सहे

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कविता _5 जन्नत का चैन सुकून लगे......

जन्नत का चैन सुकून लगे, अब फिर से लौट के आयेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे, इतिहास भुला ना पायेगा।।

कितनी सूनी हुई गोद, राखी की मिटि कलाइयाँ थी।

सिन्दूर तरसता रहा माँग, मातम की बस परछाइयाँ थी।।

नन्ही सी जान यूँ ही बिलख रही, माँ का प्यार सुला ना पायेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे, इतिहास भुला ना पायेगा।।

अब तक तो खेली थी होली, खून भरी पिचकारी से।

गद्दारों ने बहुत डराया, पत्थर की बम बारी से।

अब की बार जो करी, हिमाकत कोई छुड़ा ना पायेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

बहुत हो गई आँख-मिचौनी, अब तो दुश्मन को देख लिया।

करता चिकनी चुपड़ी बातें, ढोंगी का तूने भेष लिया।।

ऐसी आग लगा देंगे हम, कोई बुझा ना पायेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

घाटी में अब ना रण होगा, यूँ ही खिलती रहेंगी वादियाँ।

ना कोई गद्दार बनेगा ,गूँजेंगी फिर शहनाइयाँ ।।

लहराएगा सदा तिरंगा, कोई झुका ना पायेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

जन्नत का चैन सुकून लगे, अब फिर से लौट के आयेगा।

अब तक हैं कितने दर्द सहे, इतिहास भुला ना पायेगा।।


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