डैड तुम कितने अजीब हो
डैड तुम कितने अजीब हो
जाग कर अल-सुबह जाने क्या-क्या सुनते रहते हो?
कहते हो मिलेगी संगीत से एनर्जी पॉज़िटिव!
लेकिन खुद की बुढ़ाती शक्ल भी आईने में क्या ढंग से देख पाते हो?
डैड तुम कितने अजीब हो!
काम पे जाते वक्त,
कभी वॉलेट तो कभी घड़ी भूल जाते हो!
लेकिन जाने कैसे वक्त पर हर सामान ले आते हो?
डैड तुम कितने अजीब हो!
साथ तुम्हारे बहसों के बाद
माँ और मैं आँसू बहा लेते हैं।
तुम तुम्हारे आँसू पता नहीं कहाँ रख आते हो?
डैड तुम कितने अजीब हो!
माँ तो ईश्वर है मैं जानूं,
तुम्हें छाया देता* इक बरगद सा ही मानूं।
लेकिन तुम अपनी जड़ें कहाँ छिपा जाते हो?
डैड तुम कितने अजीब हो!
कभी शाम को - कभी रात को आते हो,
देर करने पे हमारी चिंतित डांट भी खाते हो।
तब थकान छिपाने वाला सांता का चेहरा कहाँ से लाते हो?
डैड तुम कितने अजीब हो!
