पथ
पथ


भटक रहा है क्यों
इन अनजानी राहों पर,
उन्माद लिये फिरता है
अनगिनत पेड़ों की डालों पर।
मन तेरा ही स्थिर नहीं
जीत सकेगा कैसे,
डरा-डरा सा रहता है
साहस करेगा कैसे ?
व्यर्थ का शोक
और व्यर्थ की व्यथा तेरी
जिंदगी जीना
कल्पित सपन सी कला तेरी।
फूलों की सेज पर सोने वालों को
काँटों पर नींद कहाँ आई,
मन को व्यर्थ ही कष्ट दिया
आँखों में आलस्य की धुंध है छाई।
अनुमान नहीं
तुझको स्वयं की शक्ति का,
बदल रहा
है रंग
अपने ही परिधानों का।
अनगिनत दृश्य हैं राह में
यूँ भटक मत,
जीतना हर किसी की पहचान
तू भी हृदय को कठोर कर।
कल क्या हुआ
और कल क्या होगा,
व्यर्थ है सवाल यह
पथ की पहचान कर।
ख्वाहिशों का सपन
पानी पर लिखा फसाना है,
क्यों उलझ रहा है व्यर्थ
आँखों में सत्य की अज़रा भर।
बूँद-बूँद से सागर बनता
अनगिनत किस्सों से कहानियां
छोटी-छोटी जीतों से
साहस अपना बुलन्द कर।