अचानक एक बात हुई प्रद्युम्न अरोठिया
अचानक एक बात हुई प्रद्युम्न अरोठिया


अचानक एक बात हुई,
कई सवालों में घिरी मन की व्यथा हुई।
क्या कहेंगे कैसे कहेंगे
उलझी उलझी सी कहानियों की शुरुआत हुई।
एक छोटा सा पल मगर
हृदय की गति बहुत तेज हुई।
पहली मुलाकात
आँखों को आँखों से मिलने की जहमत हुई।
इम्तिहान की घड़ी
शब्दों की रफ्तार बहुत धीमी हुई।
कई बार नजरें ऊपर उठी
परिस्थिति के दौर में
उतनी ही बार झुकी हुई,
बड़े संकोच के क्षण में
एक दूसरे से वार्तालाप की शुरुआत हुई।
क्या सही क्या गलत
इस बात से परे
अधूरे सवालों में घड़ी विदा हुई।
वक़्त बीता
फिर एक दिन बातों की शुरुआत हुई,
हर आहत पर
मन के हर कोने में बस उन्हीं की बात हुई।