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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Romance

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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Romance

ओ मनभावनी रे

ओ मनभावनी रे

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ओ मेरी रागिनी

ओ मनभावनी रे


चाँदनी का वसन

कुमुदनी सी लहक

चंपा की महक

माँग में सजी तारों की छावनी रे


ओ मेरी रागिनी 

ओ मनभावनी रे


पवन का झोंका कोई

लाया संदेशा कोई

हृदय आह्लाद जैसे मेला कोई

प्रेम की कोष कोख़ में वाहिनी रे


ओ मेरी रागिनी

ओ मनभावनी रे


मृदु उर्मियों में बह के

कुछ नवीन मधुर बन के

गुनगुन मन चिड़ियों सी चहके 

पदचाप धरती पे जैसे मल्हारिनी रे


ओ मेरी रागिनी

ओ मनभावनी रे


बरसने दे मेघ मल्हार

बुझने दे सब अंगार

बदन पर जो हैं भार

नाचे घटा में बन के मोरनी रे


ओ मेरी रागिनी

ओ मनभावनी रे ।।


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