वो बेचती लकड़ियां
वो बेचती लकड़ियां
वो जंगल से लकड़ियाँ बेचकर घर चलाती हैं,
पालने को बच्चे मालिक की चक्की चलाती हैं !
छाले पड़े हाथों से लकड़ियाँ काटने जाती है ,
बूढ़े कन्धों पर जुआ रखकर हल चलाती हैं !
अपना खेत नही जोतने को मजदूरी करती हैं,
वो भूख मिटाने को मुफ़लिसी में घर चलाती हैं !
सियासत अमीर जादो की कोठी बनवाने को,
गरीब की झोंपडी पर बुलडोजर चलाती हैं !
चिथडे पहनकर बेआबरू होने से बचती हैं,
खुदा के रहमो करम पर जीवन चलाती हैं !