श्रीराम
श्रीराम
पिवत राम रस चढ़ी खुमारी
तब जानी दुनियाँ हैं उधारी
जंग तब किसके लिए हैं सारी
क्यो इतनी रंजिश इतनी व्याधि
राम चदरिया तन ओढ़ के
सर चंदन तिलक लगाय
राम नाम जपते फिरे,
मन में बहु घात छुपाय
राम नाम का जाप कर ले मन में
छोड़ कर जग का ध्यान, बन में
मुक्ति मोक्ष तेरे दर आएगी
जग बदला सा लगेगा पल में ।।