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Shweta Rani Dwivedi

Inspirational

4.0  

Shweta Rani Dwivedi

Inspirational

बचपन की मुस्कान

बचपन की मुस्कान

1 min
412


कुछ लम्हे आज भी याद आते हैं

जिन्हें हम शब्दों में बयां नहीं कर पाते ।


लहरों की तरह इस उतार-चढ़ाव सी जिंदगी में कभी

गिरना कभी संभलना कभी गिरकर संभलना सीख जाते ।


आसमान में देखते हुए कभी तो हम पंछियों की तरह आसमान में पंख लगाकर उड़ जाते,

आंख खुलते ही जमीन में खुद को देखकर उड़़ना भूल जाते ।


मछलियों को चलता देखकर संघर्ष करना खुद को सिखाते हैंं

जीवन के सुख- दुख को लेकर आगे बढ़ते जाते हैं ।


 पानी की छम छम बारिश देखकर हम उस में ही खो जाते हैं,

मानो  लौटकर आ गया बचपन हम आंख बंद किए हुए बूंदों के गिरनेे को महसूस कर पाते ।


कभी तो खुले आसमान के नीचे हम झूूम के गाते हैं

लो आ गया बचपन हम उस बचपने को महसूस कर पाते ।


कभी पगडंडियों पर चलते गिरते संभालते

फिर से चलतेे बच्चों के साथ बचपन फिर से जी पाते हैं ।


बचपन को याद कर बच्चों के साथ उन खेलों

को खेलते खेलते हम कितनी दूर चले जाते हैं ।


बच्चों को अपने बचपन की कहानी 

सुनाते -सुनाते उनमें खुद खो जाते

यह सारे पल हम कभी भूल नहीं पाते है ।


हॅसते मुस्कुराते जिंदगी के हर पल गुजर जाते,

यदि बचपन की तरह हम सब मुस्कुराना सीख जाते ।


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