बचपन की मुस्कान
बचपन की मुस्कान
कुछ लम्हे आज भी याद आते हैं
जिन्हें हम शब्दों में बयां नहीं कर पाते ।
लहरों की तरह इस उतार-चढ़ाव सी जिंदगी में कभी
गिरना कभी संभलना कभी गिरकर संभलना सीख जाते ।
आसमान में देखते हुए कभी तो हम पंछियों की तरह आसमान में पंख लगाकर उड़ जाते,
आंख खुलते ही जमीन में खुद को देखकर उड़़ना भूल जाते ।
मछलियों को चलता देखकर संघर्ष करना खुद को सिखाते हैंं
जीवन के सुख- दुख को लेकर आगे बढ़ते जाते हैं ।
पानी की छम छम बारिश देखकर हम उस में ही खो जाते हैं,
मानो लौटकर आ गया बचपन हम आंख बंद किए हुए बूंदों के गिरनेे को महसूस कर पाते ।
कभी तो खुले आसमान के नीचे हम झूूम के गाते हैं
लो आ गया बचपन हम उस बचपने को महसूस कर पाते ।
कभी पगडंडियों पर चलते गिरते संभालते
फिर से चलतेे बच्चों के साथ बचपन फिर से जी पाते हैं ।
बचपन को याद कर बच्चों के साथ उन खेलों
को खेलते खेलते हम कितनी दूर चले जाते हैं ।
बच्चों को अपने बचपन की कहानी
सुनाते -सुनाते उनमें खुद खो जाते
यह सारे पल हम कभी भूल नहीं पाते है ।
हॅसते मुस्कुराते जिंदगी के हर पल गुजर जाते,
यदि बचपन की तरह हम सब मुस्कुराना सीख जाते ।