अन्नदाता
अन्नदाता
अपने खून पसीने से धरती मां की सेवा करता,
श्रम से नहीं पीछे हटता भाग्यविधाता वह कहलाता।
अभाव में रहकर भी फसलें उगाता,
मानवता के भाव से अन्नदाता अन्न उपजाता।
मानव धर्म निभाने हर समस्या में
अपनी फसल बचाता,
दिनभर अथक परिश्रम कर
खाली हाथ वह घर आता।
मिट्टी को मां समझ यह हर पल मुस्काता,
धूप, बारिश, ठंड के प्रकोप में यह प्रहरी डट जाता।
अतुल्य साहस खेत खलिहान में दिखाता,
बीज बुवाई से धान तक के सफर में किसान थक सा जाता।
धर्म जाति भेद किसान मन में ना लाता,
मानवता एकमात्र भाव से किसान
फसल बनाता।
बिन मौसम जब बादल बरसता,
मेहनत पर आंधी तूफान सा आ जाता।
मेहनत से अपनी यह औरों को जीवन देते हैं,
सीखो इनसे निःस्वार्थ जीवन किसे कहतें हैं।