शीर्षक:- गुरु चरण रज
शीर्षक:- गुरु चरण रज
जिनका ना आदि अंत है वह संत,
गुरु चरण रज माथे धरे वह बने महंत।
गुरु का अस्तित्व तो है निराकार,
परमेश्वर से कम नहीं व्यक्तित्व इनका जिसने दिया हमें आकार।
भूतल में देव तुल्य एक पहचान ,
शून्य रूपी शिष्य को बनाते गुरु इंसान ।
कृपा निधान शिष्य को कोहिनूर बना देते हैं वरदान,
शिष्य की उन्नति में गुरु का है योगदान ।
अनगिनत प्रेरणाएं है हमारे आसपास ,
बिना थके चले हरदम रहे यह प्रयास खास।
गुरु चरणों में अर्पण सर्वस्व करो विश्वास ,
शब्दों पर उनके चलो पूर्ण करो सब आस।
ज्ञान रूपी ज्योति से दूर होती परेशानी ,
भाग्य निर्माता के आगे नहीं चलती मनमानी।
संसार का हर मर्म बतलाते,
पुष्पित कर देते जीवन वह गुरु कहलाते।