ग़ज़ल
ग़ज़ल
ऋतुओं में जब शिशिर का ठौर आने लगे आम्रकुंज में आम्र वृक्ष पर बौर आने लगे
चुप हो गया जंगल का बादशाह जब से
तब गीदड़ों के बोल भी और आने लगे
पुरखे जिनके सोते आ रहे हैं जमीं पे
उनके नवासों के भी अब दौर आने लगे
छुप गया चांद जब बदली की ओंट में
आसमान में फिर तारों संग सौर आने लगे
मुनासिब ना समझा मिलना मैं जिनसे
हुज़ूर उनके चेहरे अब ग़ौर आने लगे
