फ़ितरत
फ़ितरत
मलाल हैं बदलती फ़ितरत पर रंज थोड़ी है !
वो गयी रुठकर मगर ठहरने वाली थोड़ी हैं !
आँखे सूर्ख हैं मगर रोयी नही याद में उसकी,
शब में रकीब से इश्क फरमाना गुनाह थोड़ी है !
ग़मज़दा नही उस बेवफा के बेवजह जाने से,
हबीब तेरे आगोश में इश्क बेपनाह थोड़ी हैं !
मर न जाएंगे डूबकर गम में उसके भला हम,
बिताये शब रकीब संग हरजाई पाक थोड़ी है !
उछाले कीचड़ औरों पे वो पाक दामन थोड़ी हैं !
ग़र राह में मयखाना गुनहगार गोविन्द थोड़ी हैं !