पाक नजीर
पाक नजीर


अब जमाने में भला कोई तुझसा नही रहा,
दिखा रोशनी जुगनू भी अंधेरे में बुला रहा !
ये महकी बसन्ती हवाएं थोड़ी रास आयी थी,
तेरे बिन नश्तर सी जहन में चुभने लगी थी !
किसी को अपना बनाना कितना मुश्किल हैं,
बेताब बिखरे दिल में तेरी अदाएं बसाये है !
फरेबी हो गयी हवाएं शोले भड़काने लगी है,
बन बसन्त उसकी यादों को कुरेदने लगी है !
जरा वक्त और लगेगा दर्द मुकमल भरने में,
मरहम के मिस ज़ख्म और गहरा कर गयी !
मुद्दत बाद मिले हो किसकी यादों में रहते हो,
हवा ने पूछा रेत पर नाम किसका लिखते हो !
रूह में बसी उल्फ़त की इक पाक नजीर हो,
उतारा इश्क़ बना तुझे ख्यालों में तकदीर हो !