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Govind Narayan Sharma

Romance

4  

Govind Narayan Sharma

Romance

मोहब्बत

मोहब्बत

1 min
4


मोहब्बत इश्क के सारे निशां मिटाकर गयी हैं वो ,

चीरकर दिल तड़पता ठुकराकर गयी हैं वो !


घोंपक खंजर दिल में मरा जानकर गयी है,

हाथों से कत्ल के सबूत मिटाकर गयी हैं वो !


न रही पहले जैसी उल्फ़त उसके किरदार में,

मलाल रकीब के ख़ातिर छोड़कर गयी हैं वो


मुड़कर न देखने की कसम उठाकर गयी हैं,

ख़ताये मुझे मेरी सारी जताकर गयी हैं वो !

 

घर वापसी का नेक इरादा नही है उसकाअब,

दिलबर किसी रकीब को बनाकर गयी है वो !


गुरुर रख सकू वो ऐसी वफादार न थी कभी,

उम्मीद के चराग़ खुदबखुद बुझाकर गयी है वो !


पनपे फिर रिश्ते इश्क के उम्मीद बची नही है

बेवफा मुझे ही दगाबाज बताकर गयी हैं वो !


गैरत की क्या मज़ाल कहे जो उसे हरजाई ,

बेवजह बेमुरव्वत खुद हबीब से रुठकर गयी हैं वो !


खत लिखकर दिल के राज बयाँ कर गयी हैं,

जले हुए जख्म पे नमक छिड़कर गयी है वो !


मारने को लबों से धीमा जहर पिला गयी हैं,

आगोश में ले पीठ में खंजर घोंपकर गयी हैं वो !


रुखसत होते झुका कर पलके कह गयी हैं,

हमदर्द हो तुम मेरे अश्क बहाकर गयी हैं वो !


उसे मना कर भला होगा क्या अब गोविन्द,

हाथों अपने खिलता चमन जलाकर गयी है वो !


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