मोहब्बत
मोहब्बत
मोहब्बत इश्क के सारे निशां मिटाकर गयी हैं वो ,
चीरकर दिल तड़पता ठुकराकर गयी हैं वो !
घोंपक खंजर दिल में मरा जानकर गयी है,
हाथों से कत्ल के सबूत मिटाकर गयी हैं वो !
न रही पहले जैसी उल्फ़त उसके किरदार में,
मलाल रकीब के ख़ातिर छोड़कर गयी हैं वो
मुड़कर न देखने की कसम उठाकर गयी हैं,
ख़ताये मुझे मेरी सारी जताकर गयी हैं वो !
घर वापसी का नेक इरादा नही है उसकाअब,
दिलबर किसी रकीब को बनाकर गयी है वो !
गुरुर रख सकू वो ऐसी वफादार न थी कभी,
उम्मीद के चराग़ खुदबखुद बुझाकर गयी है वो !
पनपे फिर रिश्ते इश्क के उम्मीद बची नही है
बेवफा मुझे ही दगाबाज बताकर गयी हैं वो !
गैरत की क्या मज़ाल कहे जो उसे हरजाई ,
बेवजह बेमुरव्वत खुद हबीब से रुठकर गयी हैं वो !
खत लिखकर दिल के राज बयाँ कर गयी हैं,
जले हुए जख्म पे नमक छिड़कर गयी है वो !
मारने को लबों से धीमा जहर पिला गयी हैं,
आगोश में ले पीठ में खंजर घोंपकर गयी हैं वो !
रुखसत होते झुका कर पलके कह गयी हैं,
हमदर्द हो तुम मेरे अश्क बहाकर गयी हैं वो !
उसे मना कर भला होगा क्या अब गोविन्द,
हाथों अपने खिलता चमन जलाकर गयी है वो !